मध्यप्रदेश में उप चुनाव पर टिकी है ज्योतिरादित्य सिंधिया की आस !

भोपाल। कमलनाथ सरकार को बेदखल कर अपने 22 विधायकों को साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भारतीय जनता पार्टी तो ज्वाइन कर ली परंतु तब से लेकर वर्तमान समय तक घटे घटनाक्रमों , स्थितियों के कारण कहीं ना कहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने आप को ठगा महसूस करने लगे हैं । 
प्रदेश में शिवराज सिंह के  मुख्यमंत्री की शपथ लेने के लगभग 25 दिन गुज़र जाने के बावजूद मंत्रिमंडल का गठन नहीं होना , ज्योतिरादित्य सिंधिया का भाजपा के आला  नेताओं से लगातार संपर्क करना और शिवराज सिंह चौहान की हठधर्मिता इस बात का प्रमाण है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस और कमलनाथ से बगावत करने के पश्चात अपनी इस स्थिति की कल्पना भी नहीं कर पाए थे। 
 प्रदेश में 22 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव नजदीक है,  पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ , पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉक्टर गोविंद सिंह सहित केपी सिंह ग्वालियर चंबल संभाग में लगातार सिंधिया समर्थकों की घेराबंदी और उपचुनाव की तैयारी में लगे हुए हैं। 
 इन 22 सीटों के उपचुनाव में कांग्रेस के पास सबसे बड़ा मुद्दा कांग्रेस बनाम भाजपा के साथ बागी विधायकों की सौदेबाजी का रहेगा। क्योंकि जिस प्रकार कांग्रेस के बागी विधायकों के द्वारा कांग्रेस के टिकट पर जीत कर आने और जनता के विश्वास के साथ छल कपट कर सौदेबाजी के बाद भारतीय जनता पार्टी में सम्मिलित होकर विश्वासघात किया है वे किसी से छिपा हुआ नहीं। 
  22 सीटों के उपचुनाव में सिंधिया और भाजपा दोनों के लिए कठिन परीक्षा का दौर है । क्योंकि कांग्रेस पार्टी सिंधिया और भाजपा दोनों को  नाकों चने  चबवाने की तैयारी में है। 


 ग्वालियर चंबल संभाग के कद्दावर नेता डॉक्टर गोविंद सिंह और केपी सिंह द्वारा की जा रही घेराबंदी से यह स्पष्ट हो गया है कि सिंधिया और भाजपा के लिए ग्वालियर चंबल संभाग में उपचुनाव जीतना आसान नहीं होगा। स्वयं  सिंधिया इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि उपचुनाव में उनको और भाजपा को भारी नुकसान की आशंका है । यही कारण है कि  उपचुनाव से पूर्व  ज्योतिरादित्य सिंधिया यह चाहते  कि उनके  समर्थको को  शिवराज सरकार में  एडजस्ट करा लिया जाए । परंतु वर्तमान हालात में सिंधिया की दाल गलती नजर नहीं आ रही । जिस प्रकार भाजपा हाईकमान का उनके प्रति बर्ताव और शिवराज की उजागर हो रही हठधर्मिता से साफ जाहिर हो रहा है कि  ज्योतिरादित्य सिंधिया भयभीत नजर आ रहे हैं। 
 गौरतलब हो 2018 के चुनाव में  ज्योतिरादित्य सिंधिया ने  अपनी मर्जी के 40-50 नेताओं को टिकट दिलवाए । कमलनाथ सरकार में अपने समर्थक विधायकों को मंत्री बनवाने और महत्वपूर्ण विभाग दिलवाने में सफल रहने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया आज अपने समर्थकों को मंत्री बनवाने के लिए  भाजपा में शामिल होकर  अपने आपको असहाय मेहसूस कर रहे हैं । 
 कांग्रेस से बगावत कर  इस्तीफा देने वाले वाले  22 विधायकों में से 15 विधायक ग्वालियर चंबल संभाग से हैं जौरा और आगर मालवा की जो 2 सीटें कॉंग्रेस और भाजपा के एक एक विधायक की मृत्यु के कारण खाली हुई हैं उनमें से भी एक इसी ग्वालियर चंबल संभाग में आती है । इस तरह ग्वालियर चंबल संभाग में 16 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है । शेष अन्य आठ सीटें प्रदेश के अन्य  अन्य क्षेत्रों से जुड़ी हुई हैं। 
 यदि कमलनाथ , दिग्विजय सिंह , डॉक्टर गोविंद सिंह और केपी सिंह  की  रणनीति  इन उपचुनाव में काम आती है तो ग्वालियर चंबल संभाग में होने वाले 16 विधानसभा सीटों पर भाजपा और सिंधिया दोनों की दांव पर की प्रतिष्ठा  ठिकाने लग सकती है । क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया स्वयं लोकसभा चुनाव हार चुके हैं । जनता भलीभांति जानती हैं कि इन 22 विधायकों द्वारा जिस प्रकार सौदेबाजी के बीच कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र देकर जनता पार्टी में शिरकत की है तब प्रदेश  कोरोना वायरस  जेसी गंभीर महामारी का सामना कर रहा था । कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद जिस प्रकार भाजपा द्वारा पीछे के दरवाजे से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई गई , नेशनल लोक डाउन के  बीच  मध्यप्रदेश विधानसभा में शिवराज सिंह चौहान द्वारा विश्वास मत हासिल किया गया तथा बिना मंत्री परिषद के गठन किए विगत 25 दिनों से  प्रदेश में चल रही संवैधानिक सरकार द्वारा कोरोना वायरस जैसी महामारी  पर नियंत्रण ना होने के कारण उसका विकराल रूप लेना  इस सब के पीछे क्या कारण है , जनता भलीभांति जानती है।  
इस प्रकार प्रदेश में होने वाले 22 सीटों के उपचुनाव भाजपा और ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए कठिन परीक्षा समान हैं ।  जो ज्योतिरादित्य सिंधिया उनके समर्थक विधायकों एवं भाजपा का भविष्य तय करेंगे। 
@सैयद ख़ालिद कैस